मासुम मोहब्बत का बस इत्ना फसाना हे,
कागज कि हवेली हे बारीश का जमाना हे।
क्या शर्त-ए-मोहब्बत हे क्या शर्त-ए-जमाना हे,
आवाज भि जख्मी हे और गीत भि गाना हे।
उस पर उतरने कि उम्मीद बोहत कम हे,
कश्ती भि पुरानी है और तुफान को भि आना हे।
सम्झे या ना सम्झे वो अन्दाज मोहब्बत का
एक सख्सको आखों से एक शेर सुनाना हे।
ये इश्क नहिँ आसान बस इत्ना समझ लिजिए ,
एक आगका दरियाँ हे और डूब कर जाना है।।
By: (I am confused about the शायर)
They say February is all about love, so dedicated to Dear February :-)
Disclaimer: I do not believe that love is solely for or is dedicated to only a particular month. If love, love is always there.
Metta!!
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